मंगलवार, 10 अगस्त 2010

यथार्थ जब यु विषाक्त ह़ो जाये

यथार्थ जब यु विषाक्त ह़ो जाये, देह जब उगालदान ह़ो जाए,
इन्साफ रहे कामियो की लंगोटी में, देश तब नाबदान ह़ो जाए.

खुदी को खुद ख़त्म करना, महज क्यों है नारी की लाचारी,
क़त्ल अपना नहीं वाजिब, उडाओ सर, उठाओ खड्ग दो-धारी,

तू पतनी है, तू बहना है, तू माँ है जनमदाता, और तू ही काली,
बहादे रक्त आसुरो का, बुझा ले प्यास, तेरा खप्पर क्यों है खाली.

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें