सस्नेह नमस्कार।
लो ब्लॉग सुरु ह़ोते ही, अभिव्यक्ति को पंख मिल गए।
न कुछ kahne की pida me, अनुभूति को रंग मिल गए।
न दुखेगा मन अब, न कुछ कह पाने के लिए।
न रहेगी व्यस्तता की चादर, फिर odhane के लिए।
न कहेगे यार मिलते ही, क्यों आजकल कहा रहते ह़ो।
बिलकुल ही लापता ह़ो, kya ho, कहा, क्या करते ह़ो।
तो मिलते है, इस ब्लोगिया अड्डे पर कभी कभी।
स्वागत में है ये, ताजातरीन गीत अभी अभी।
******************** श्याम बिस्वानी *******
तू और मैं
लो फिर से मौसम मस्त हुआ, लो फिर से चली है पुरवाई।
लो फिर से नगमे मचल पड़े, लो फिर से तेरी याद आई।
लो फिर से बौराया तन - मन, सूखे अधरों पे प्यास जगी।
लो फिर से सपने मचल उठे, सोती रातो की नीद भगी।
फिर तूने कही दर्पण देखा, तू फिर से कही है मुस्काई।
फिर तूने किया है जिक्र मेरा, तू फिर से कही है सर्माई।
लो फिर से आँखे सजल हुई, लो फिर मिलने की चाह जगी।
हम भूल गए - हम कहा रहे, जीवन सरिता है कितनी बही।
अंधे को क्यों दर्पण दे डाला, बहरे को सुनाई सहनाई।
क्यों पतझड़ में पानी डाला, क्यों फिर से बुलाई तरुनाई.
*********** मिलते है अगली बार, आपके सुन कर विचार ****
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