गुरुवार, 13 मई 2010

ऒ दर्वेश तो..

ढून्ढ्ते थे जिसे, जमाने भर मे, ऒ दर्वेश तो, अपने ही शहर निकला.
कमतरी पहचान की थी, मेरा हमसफ़र ही, बस मेरा, रहनुमा निकला.

चन्द वादे, मुकर जाने के लिये, आप आये है, फिर से जाने के लिये.
शुकर है कि, खिलखिलाये तो, गम के दरिया मे, डूब जाने के लिये.

कौन कह्ता है, सराफ़त मर गई, तुम को देखा, जब से मुस्कराते हुए.
रात मे नीन्द, छलावा करती, युही बस तेरे, और करीब जाने के लिए.

जुनु मे सही, जाने को कह दिया, चान्द उतार, लाने को कह दिया.
न जाना कि, ए तो पागल है, सीढियो पे सीढी, लगाता रह जायेगा.

झूठे वादे पे, एतबार किया, बेव्कूफ़ है, आसमान से भिड जायेगा.
बचाले पछ्तायेगी, तेरा दीवाना है, चान्द क्या, खुद को मरा पायेगा.

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