गुरुवार, 10 जून 2010

गमगीन वक्त भी, नमकीन हो गया.

मरने की चाह ने, जीना सिखा दिया.
मिलने की राह ने, पीना सिखा दिया.

भट्की हुइ निगाहे, ठहरी है आप पे.
सारे जहा की खुस्बू, सिमटी है आप मे.

खोये हुए खजाने, फ़िर अपने हो गए.
किस्मत से एक बार, हम फ़िर मिल गए,

काली स्याह-राते, चान्दनी बन गई,
मिट के सिकस्त फ़िर, हसरत हो गई.

आते ही आपके, मौसम बदल गये,
सहरा मे फ़िर तेरे, जल्वे म़चल गये.

गमगीन वक्त भी, नमकीन हो गया.
चेहरे पे आपके, आई ए जो हया.

रूक जाइये थोडा, दम लेने तो दे,
एक बार ही सही, जी भर जीने दे.

जाना कि जाना है, चले जाइगा,
जाने के बाद भी, तो हमे पाइगा.

गिरवी रखी है, सासे हमारी आपने,
जिन्दा हू चुका के, हसरते ब्याज मे.

कहने को कह दिया, कोइ नही है हम,
आते ही जिक्र मेरा, क्यो आखे हुई नम.

हसरत मे रहे जिन्दा, हसरत मे मरेगे,
मिलने की आप से, हसरत ही करेगे.

5 टिप्‍पणियां:

  1. गिरवी रखी है, सासे हमारी आपने,
    जिन्दा हू चुका के, हसरते ब्याज मे

    शुभकामनाएं

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  2. हने को कह दिया, कोइ नही है हम,
    आते ही जिक्र मेरा, क्यो आखे हुई नम.

    हसरत मे रहे जिन्दा, हसरत मे मरेगे,
    मिलने की आप से, हसरत ही करेगे.
    बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  3. हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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