मंगलवार, 4 मई 2010

प्यासा पथिक

सर सलिल के पास आकर, जब पथिक प्यासा गया।
भावना समझे बिना ही, सरोवर अकुला गया।

स्वयं को देखा उपेक्षित, सोच बैठा कुछ सरोवर।
वेदना को क्या समझता, बीतती क्या पथिक मन पर।

कमल दल सुकुमार कोमल, कर तालो से हिल न जाये।
साधना के भ्रमर डर कर, दूर नभ में खो न जाये।

धूल धूसर कर से सरोवर को, कही पंकित न कर दू।
लहरे उठा शांत सर को, ब्यर्थ ही व्यचलित न कर दू।

इसलिए सर के किनारे से, पथिक प्यासा गया।
और ब्यर्थ की दुर्भावना ने, सरोवर अकुला गया।

*** श्याम बिस्वानी ****

1 टिप्पणी:

  1. यह आपने बहुत अच्छा किया । आपकी अभिव्यक्तियों पर प्राप्त टिप्पणियों के आधार पर लेखन को निखारने अवसर मिलेगा ।

    शुभकामनाओं सहित

    राकेश

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