आस्मा क्यो नीला लगे, और अग्नि क्यो पीली लगे.
जानते ही राज इनके जब, तिलिस्म सब यु ही भगे.
"तमसो मा ज्योतिर गमय" का ग्यान आवाहन लगे.
गुरु - मान का बट व्रक्छ, तब स्वत ही उर मे उगे.
शिस्य को गुरुर के काबिल, बनाये जो वही गुरु हो.
आस्था की अविरल धार, शिस्य मे तब युही सुरु हो.
कि .... गुरु गोविन्द दोऊ खडे, काके लागो पाय.
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो दिखाय.
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