गुरुवार, 14 मई 2015

चान्दनी तरसती रही काज़ल को



रात भर चान्दनी तरसती रही  काज़ल   को,
दूज  की  रात  हुई  तो चान्दनी  फ़रार   रहे.

नसीहतो से डर के न तुमने  प्यार  किया,
चाहतॊ  मे  तेरी  .. बस  हम  ही  बेजार रहे.

दिलो की  अदावते  भी   क्या   खूब    रही,
न तुमने कैद किया न ही  हम  फ़रार  रहे.

फ़ासले हमने बस एक तरफ़ा  कम  किये,
नजदिकिया बस आप को ही  नागवार रहे.

मज़िलो पे  हम  सफ़र  भी   कम  हो  लिये,
आखिरी वक्त है अब न कोइ  दरो  दीवार रहे.