रात भर चान्दनी तरसती रही काज़ल को,
दूज की रात हुई तो चान्दनी फ़रार रहे.
नसीहतो से डर के न तुमने प्यार किया,
चाहतॊ मे तेरी .. बस हम ही बेजार रहे.
दिलो की अदावते भी क्या खूब रही,
न तुमने कैद किया न ही हम फ़रार रहे.
फ़ासले हमने बस एक तरफ़ा कम किये,
नजदिकिया बस आप को ही नागवार रहे.
मज़िलो पे हम सफ़र भी कम हो लिये,
आखिरी वक्त है अब न कोइ दरो दीवार रहे.
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